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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/११२

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१०४
चौदहवां
रज़ीयाबेगम।


समझता हूं कि तुम जो बेगम के साथ आशनाई करने के वास्ते मेरे साथ ज़िद करती थीं, यह फ़क़त मेरे दिल के टटोलने की नीयत से!!!

सौसन,-"नहीं, जानेमनसलामत ! उस वक़्त मुझे उस तवारीख का मुतलक ख़याल न था।"

याकूब-" खैर, तो अब हमीदा का किस्सा भी बयान करो, जिससे मैं यह समझं कि तुमने उस किताब में कहां तक दिल लगाया है?"

सौसन,-"सुनो, प्यारे ! लैला के मारे जाने के दोसौ बरस बाद, बादशाह शमसुद्दीन जब मरा तो उसकी नौजवान लड़की यूनान के तल पर बैठी । वह बड़ी आकिल और आलिम थी। आखिर, जब जवानी के जोश ने उसे बेकाबू करना चाहा तो उसने अपने दिल और अपनी तबीयत का खुलासा हाल अपने वज़ीरों और अमीरों पर ज़ाहिर कर दिया और उनसे इस बारे में सलाह और मदद चाही । आखिर, लोगों ने खूब गौर करने के बाद उसकी शादी एक खान्दानी अमीर के साथ करदी, मगर उस अमीर से इस बात का एक इकरारनामा लिखवा लिया गया था कि,-'वह सिर्फ रात के वक्त ६ घंटे बेगम के पास रहने के अलावे और किसी किस्म का ताल्लुक बेगम या सल्तनत से न रक्खेगा और अगर किसी किस्म को साज़िश उसकी पाई जायगी तो वह फ़ौरन जान से मार डाला जायगा।' आख़िर, उस अमीर ने बड़ी नेकनीयती से बेगम के साथ अपना दिन बिताया और जब बेगम को लड़का हुआ और वह बड़ा हुआ तो वही यूनान का नामी बाद- शाह सिकन्दर हुआ।"

याकूब,-"शाबाश ! शाबाश!!! प्यारी, सौसन ! बेशक तुमने उस किताब को खूब गौर के साथ पढ़ा है । अच्छा, अब एक बात पर और गौर करना चाहिए । वह यह है कि जिस तरह बेगम मेरे पीछे पड़ी है, उसी तरह उसकी कुटनी लौंडी जोहरा बेचारे अयूब पर घात लगा रही है।"

सासन-"हां प्यारे ! वह हाल तुमने मुझसे उस रोज़ कहा था और तुम्हारी सलाह बमुजिब मैंने गुलशन को इस बात से आगाह कर दिया है।"