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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/११५

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।


गोल था, जिसका घेरा दोसौ हाथ से कम न था और उसकी सजावट या आराइश का कोई ठौर ठिकाना न था। वह बिल्कुल संगमर्मर और स्याहमूसे से बना हुआ था, उसके बीच की कड़ी में लटकती हुई बिल्लौरी हांडी में मोमबत्ती जल रही थी और बीचोबीच एक खुशनुमा छपरखट बिछा हुआ था। उस नकाबपोश ने बेगम को ले जाकर उसी छपरखर पर लिटा दिया और फिर वह लखलखा सुंघाकर बेगम को होश में लाया।

होश में आते ही बेगम मारे घबराहट के ज़ोर से चिल्ला उठी और अपने सामने एक नकाबपोश को देख और अपने तह एक अनजानी जगह में पाकर एक दम घपरागई और बोल उठी,- या खुदा ! मैं कहां हूँ !"

नकाबपोश, आप अपने किले के अन्दर ही हैं।"

रज़ीया मारे घबराहट के इधर उधर नज़र दौड़ाकर देखने लगी और बोली-

"यह कौन सी जगह है?"

नकाबपोश, -"हजत! यह एक पोशीदा जगह है।"

रज़ीया,-(गुस्से से ) "और तू कौन है, हरामजादे?"

नकाबपोश,-"अय, मलका! मैं तेरा आशिक हूँ!"

यह सुनते ही रजीया मारे क्रोध के कांपने लगी और अंगिया के भीतर से छुरा निकाल, उस नकाबपोश पर झपटी, पर बात को बात में उस नकाबपोश ने रज़ीया के हाथ से खंज़र छीन लिया और उसे बरजोरी छपरखट पर बैठा कर कहा,-

"बेगम!-

इतना भी कोई खफ़ा होता है!

आदमी से कुसूर होता है।"

रज़ीया,- अबे! हरामीपिल्ले ! क्या मौत तेरी दामनगीर हुई है दोज़खी कुत्ते ! अभी मैं तेरा सर काट लेती हूं।"

नकाबपोश, -" अय रजीया ! इतनी गरमागरमी क्यों.?- खुद गला काटूं, अगर खंजर इनायत कीजिए। देखिए दुख जायगी, नाजुक कलाई आपकी ॥"

रज़ीया,-(तावपेच खाकर )" कम्बख्त! तू है कौन ?" नकाबपोश,-" यह तो पहिले ही कह चुका हूं कि मैं, तेरून