"क्या भटिण्डे का क़िलेदार आया?
खुर्शद,-" जी हां, जहांपनाह ! वह आज अलस्सुबह आया है, और जो कुछ इर्शाद हो, वसरोचश्म बजा लाने के वास्ते तैयार है।"
रज़ीया,-" बेहतर ! तो अब मैं यह चाहती हूँ कि मेरी वाल्दः तीनों भाई, (१) उनकी बीबियां और लड़केबाले भटिण्डे के क़िले में कैद रहने के वास्ते भेज दिए जायं, और वहांके क़िलेदार-क्या नाम उसका?"
खुर्शद-" अल्तूनियां।
रज़ीया,-"हां, ठीक है, मैं भूलगई थी। ख़ैर तो उस तुर्की सर्दार अल्तूनियां को इस बात की सख्त़ ताकीद कर दी जाय कि वह मेरी वाल्दः और बिरादरों की ख़ातिर्दारी में हर्गिज़ कमी न करे ; मगर, हां! वे सब बतौर कैदी के शुमार न किए जाने पर भी आजाद न समझे जायं और उनकी बखूबी निगरानी की जाय; इसलिए कि सल्तनत में फिर किसी तरह के फ़साद वर्षा होने का दहशत न रहे।"
खुर्शद,-"जो इर्शाद!"
रज़ीया,-" मगर हां, अब इस बात को बखूबी गौर कर लेना चाहिए कि इन लोगों को किस ढब से कैद कर के भटिण्डे के किले में भेजा जाय!"
खुर्शद,-"जिस तर्कीब को हुजूर मुनासिब समझे!"
रज़ीया,- यह नहीं; यह कार्रवाई क्यों कर ब आसानी की जा सकती है, इसमें तुम अपनी राय जाहिर करो।"
खुर्शद,-(सिर खुजलाते खुजलाते ) “हुजूर से अगर इस गुलाम को एक हफ्ते की मुहलत मिले तो गुलाम गौर करने बाद इस अम्र में अपनी नाचीज़ राय ज़ाहिर कर सकता है।"
रज़ीया,-"माज़ अल्लाह ! अज़ी इस ज़रा सी बात के वास्ते एक हफ़्ते का बेशकीमत वक्त फजूल क्यों जाया किया जाय ? मैं यह चाहती हूं कि इस बारे में जो कुछ करना है, वह अभी तय कर लिया जाय और इसके बाद अभी से उसकी कार्रवाई शुरू करदी जाय।"
(१) रुकनुद्दीन, मुइज्जुहीन, नासिरुद्दीन ।