पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२
(आठवां
रज़ीयाबेगम।


के लिए आई थी । बाग़ की कई निराली जगहों में याकूब को खोजती खोजती वह झील के पास आई और वहां परके लतामण्डप के अन्दर ज्योंही वह घुसी, उसने याकूब को अपने सामने पाया। उसे देख, उठकर याकूब ने जो कुछ कहा था, उसे हम ऊपर लिखही आए हैं, जिसे सुनकर लज्जा से नीची नार किए हुए सौसन ने यों कहा-

"वल्लाह, आप उठे क्यों; बदस्तूर अपनी जगहपर बैठिए, आराम कीजिए। अगर ऐसा जानती कि मेरे आने से आपके आराम में खलल पहुंचेगा तो मैं हर्गिज इधर क़दम न रखती।"

याकूब,-(सिर झुकाए हुए ) "हज़रत ! एक अदने गुलाम के साथ आपको इस तरह की गुफ्तगू न करनी चाहिए।"

सौसन,-"लाहौलबलाकूवत, साहब ! खुदा के वास्ते ऐसा बद कलमा जुबाने शीरी से न निकालिए । आखिर ! मैं भी तो सुल्ताना की एक अदनी लौंडी ही हूं।"

याकूब ने सिर उठाकर सौसन की ओर देखा और चार आंखें होतेही सौसन ने शरमा कर सिर झुका लिया और याकूब आजिज़ी से कहा,-

"खुदारा, ऐसा न फर्माइए आपमें और मुझमें जमीन और आसमान की तफ़ावत है।"

सौसन,-"लिल्लाह, इस नाकिस ख़याल को आप अरअप ने दिल में जगह न दें और बराहे मिहरबानी अपनी जगह पर तश- रीफ़ रक्खें; वर न मैं फ़ौरन यहांसे चली जाऊँगी और यही दिलमें समभंगी कि आपने मेरी दिलशिकनी की।”

याकूब,-"वल्लाह आलम ! भला यह कभी मुमकिन है कि आप खड़ी रहें और बंदा बैठे, अगर नागवार ख़ातिर न हो तो आप यहां पर तशरीफ़ रक्खें, मैं ज़मीन में भी बैठ जाऊँगा।"

सौसन,-"साहब ! बस, ज़ियादह चुनाचुनी या तकल्लुफ़ की कोई ज़रूरत नहीं है। आप बैठे, मैं खड़ी रहूंगी।"

याकूब,-"क्या खूब ! आप खड़ी रहेंगी और बंद बैठेगा! यह भी मुमकिन है ? खैर तो ज बआप बैठे हीगी नहीं, और मैं बग़ैर आपके बैठे, हर्गिज न बैलूंगा तो इससे यही बिहतर है कि दोनों ही खड़े रहें!!!"