सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६०
(नवां
रज़ीयाबेगम।


ज़बान तालू से ऐसी चिपक गई थी कि उससे कुछ भी बोला न गया । यही हाल उस परी का भी था कि जब तक वह आड़ में थी, बेधड़क छेड़छाड़ की बातें करती रही, पर जब वह अयूब के सामने आई, उसको भी जुबान बंद होगई और वह कठपुतली की भांति अयूब के सामने नीची गर्दन किए खड़ी खड़ी ज़मीन की ओर निहारने लगी। कुछ देर तक उन दोनों का यही हाल रहा, पर एकाएक उस सुंदरी ने ज्योंही आंखें उठाईं कि उसकी आंखें अयूब की आंखों से बेतरह लड़-पड़ी; किन्तु लाचारी से उस लजीली सुन्दरी को ही अपनी आंखें नीची कर लेनी पड़ीं ! योहीं जब दो चार बार आपस में नैनों के बार चल चुके, तब कुछ साहस पाकर अयूब ने उस सुन्दरी का हाथ अपने दोनों हाथों में लेलिया और बड़ी आजिजी के साथ कहा,-

" प्यारी ! गुलशन ! यह क्या सुपना है ! या बाकई मैं इस घड़ी आपको अपने रूबरू देख रहा हूं?"

गुलशन का हाथ अयूल के दोनों हाथों के बीच में पड़ कर कांप रहाथा । वह हया के दर्या में डूबने उतराने लग गई थी और उसने बड़ी कठिनाई से केवल इतना ही कहा,--

"खुदा करे, यह सुपना ताजीस्त काइम रहे।"

फिर वे दोनों कुछ देर तक चुपके खड़े रहे; और न जाने कबतक वे योहीं चुपचाप खड़े रहते, पर लताओं की झुरमुट की ओट से किसी के छींकने और साथही खखारने की आवाज़ आई, इससे वे दोनों चौकन्ने हो, इधर उधर देखने लगे । गुलशन ने अपना हाथ अयूब के हाथों के बीच से अलग कर लिया और अयूब ने इधर उधर देखकर कहा,--

"यह किसके छींकने, या खखारने की आवाज़ है?"

गुलशन,-" मैं इस आवाज़ को पहिचान न सकी कि किसकी है, मगर-"

अयूब,-" क्यों ? रुक क्यों गईं ? "

गुलशन,-(सिर झुकाए हुई ) " अगर किसीने हमलोगों को देख लिया हो और जान बूझकर छींका या खखारा हो, तो !!!"

अयूब,-" यह मुमकिन है; अच्छा, आप थोड़ी देर यहींपर ठहरी रहें, मैं फ़ौरन इस झाड़ी में घुस कर देखता हूं कि कहींपर