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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/७७

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परिच्छेद)
६९
रङ्गमहल में हलाहला

को पाते ही बेगम साहिबा ने कई बांदियों को बाग़ के फाटकों पर इसलिये भेज दिया है कि वे इस कोशिश में लगी रहें जिसमें चोट्टा भागने न पावे। एक लौंडी जल्लाद के बुला लाने के लिये भेजी गई है और मैं इस वास्ते यहां भेजी गई हूं कि आपको गिरफ़्तार करके बेगम साहिबा के रूबरू फ़ौरन पेश करूं । अब बतलाइए, इसमें मेरा क्या चारा है, या मैं बेगम के गुस्से या जल्लाद की तल्वार से आप को क्योंकर बचा सकती हूं ! मगर नहीं, आपके रोने गिड़गिड़ाने या आजू मिन्नत करने और आपकी नौजवानी वो खूबसूरती पर ख़याल करने से मेरे दिल में हमदर्दी ने जगह की है; इस लिये बहुत कुछ गौर करने पर फ़कत एक यही सूरत नज़र आती है कि अब अगर आपकी जान बचाऊं, तो आप के साथही मुझे भी यहासे भागना पड़ेगा, बर न और किसी तौर से आपकी जान नहीं बच सकती।"

ज़ोहरा की बातों को अयूब बड़े ग़ौर के साथ सुनता और उस की ओर देखता रहा, और जब वह कहचुकी तो उसने कहा--

"मगर बी ज़ोहरा ! भला, यह क्यों कर मुझे गवारा होगा कि मेरी वजह से आपको शाही दर्वार छोड़ना पड़े।"

ज़ोहरा,-"हर्ज क्या है ? क्या जिसकी मैं जान बचाऊंगी या जिसके ख़ातिर मैं शाही महलसरा से निकल भागूंगी, उसके दिल में मेरा कुछभी ख़याल न होगा और वह मेरी पर्वरिश का ख़याल अपने जीसे एक दम दूर कर देगा।

अयूब,-"आप जानती हैं कि मैं कोई अमीर शख्स नहीं, बल्कि एक अदना गुलाम हूं और गुलामी करके ही अपनी ज़िन्दगी के दिन पूरे करता हूं; चुनांचे अगर आपको मैं अपने हमराह ले भी चलूं तो क्योंकर आप का गुजारा मेरे साथ हो सकेगा ?"

ज़ोहरा,-" इस बात की फ़िक आप ज़रा न करें। इतनी दौलत अपने साथ ले चलंगी कि ताज़ीस्त रुपए पैसे की कमी न होगी और अमीराना ढंग से दस लौंडो गुलामों को रख कर बड़े चैन से मेरी और आपकी गुज़रेगी।"

ज़ोहरा की इस बात ने अयूब के ज़िगर में मानों ज़हरीला तीर मारा, जिसकी जलन से वह तड़प उठा और कुछ देर तक चुपचाप ज़मीन की ओर तकता रहा । उसके इस ढंग को ज़ोहरा