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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/७८

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७०
(दसवां
रज़ीयाबेगम।

ने भली भांति समझा और भीतर ही भीतर ताव पेच खा कर उसने कहा,-- ज़ोहरा, लिल्लाह ! अब जो कुछ इरादा आपका हो, उसे जल्द ज़ाहिर कीजिए, क्योंकि आपसे बातें करने में ज़ियादह देर होगई, इसलिये अब मैं यहां नहीं ठहर सकती।"

अयूब,--अगर मैं इस बात को मंजूर कर भी लूं तो क्या आप अभी मेरे साथ चल खड़ी होंगी?"

ज़ोहरा,-(खुश होकर) "तुरंत नहीं, क्योंकि कुछ देर के वास्ते मुझे इसलिये यहां ठहरना पड़ेगा कि मैं अपनी जमा पूंजी को अपने हाथ करलूं तो यहांसे भागूं।"

अयूब,-"आपने ठीक कहा, मगर तब तक क्या मैं भी यहीं रहूंगा, और दूसरी बांदी या खोजे यहां आकर मुझे गिरफ्तार न कर लेंगे?

ज़ोहरा,--"नहीं, आपको अब यहां पर एक लहज़े भी न ठहरना पड़ेगा। कौन ठिकाना, अगर कोई दूसरा शख्स यहां आ जाय, तब तो आप बेतरह बला में फंस जायगे; इसलिये आपको मैं अपने साथ अभी एक ऐसे ठिकाने पर ले चलती हूं कि जहां पर भाप बिलाखौफ़ कुछ देर तक आराम करेंगे और आधी रात के वक्त मैं आपको साथ लेकर बेगम को अंगूठा दिखलाती हुई. यहां से निकल चलंगी।"

अयूब,--मगर इतनी तरदुद न उठा कर अगर एक काम आप करें तो आपको भी मेरे लिये यहांसे न भागना पड़े और मैं भी अपनी जान बड़ी आसानी से बचालूं।"

ज़ोहरा,-( चिहुंक कर ) " यह क्यों कर?”

अयूब,-" सुनिए,-बवजह तबीयत खराब रहने के मैं यहां पर खाली हाथ आया था, अगर मिहरबानी करके आप मुझे अपने हाथ की यह तल्वार देदें तो मैं एक नहीं, हज़ार बेगम और जल्लादों के. आगे से ब आसानी बेलाग निकल जा सकता हूँ?"

यह बात सुन कर ज़ोहरा सन्नाटे में आगई, और उसे अयूब की इस बात पर ज़रा भी ताज्जुब न हुआ । उसके तल्वार का जौहर तो वह भली भांति देख चुकी थी; पर उसने कुछ सोच समझ कर

कहा,--" अफ़सीस है, कि मैं अब आपकी इस मदद के करने