पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/८१

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।

"इस करीबउल्मौत कम्बरन की यह निशानी आप हमीशा अपने पास रखिएगा । यह निहायत बेशकीमत और नायाब मोती है।"

अयूब इतनाही कहने पाया था और ज़ोहरा उसे भरपूर देखने भी न पाई थी कि अजीब तमाशा हुआ; अर्थात हाथ की गर्मी पाकर मोती तड़क गया और उसके अन्दर से एक तरह की गर्द निकलकर जोहरा के नाक के छेदों इस तेजी के साथ घुस गई, कि जिससे एक छोंक मार कर वह ऐसे झोंक से गिरने लगी थी कि यदि अयूब उसे न सम्हालता तो उसका सिर संगमर्मर के चबूतरे या चौको पर गिर कर चकनाचूर हो जाता। आखिर, अयूब ने उसे वहीं ज़मीन में लिटा दिया और उसकी तलाशी ली; पर उसके पास ऐसी कोई चीज़ न निकली, जो अयूब के काम की होती; इसलिये उसे उसी दशा में अयूब ने पड़ी रहने दिया और आप उस कुंजवन के बगल वाली उस झाड़ी में घुसा, जिसमें से गुलशन के साथ बातें करने के समय किसीके छींकने, खखारने और ताना मारने की आवाज़ आई थी।

उस लतामंडप से सटी हुई वह झाड़ी बांसों और लताओं की थी, जो बहुत ही धनी और दूर तक फैली हुई थी । यद्यपि अभी सूरज डूबने में कुछ देर थी, पर उस झाड़ो में हाथ से हाथ नहीं सूझता था। आखिर, अयूब किसी किसी तरह उस झाड़ी के पार हुआ और चारो ओर देन, निराला पा, एक चोर दर्वाजे की राह, बाग़ से बाहर होकर अपने ठिकाने पर पहुंच गया।

पाठक, इधर का तो यह हाल था, अब उधर का सुमिए कि ज़ोहरा के जाने बाद घंटे भर तक बेगम चुपचाप बैठी बैठी तालाय की ओर, और कभी कभी अपनी सहेलियों की ओर, जो अब तक उसी हालत में थीं, निहारती रही; किन्तु जब एक घंटा बीत गया और ज़ोहरा न लौटी, तब तो बेगम कुछ घबराई और उसने लौंड़ियों को हुक्म दिया कि,-"जोहरा को जल्द हाज़िर करो।"

बेचारी लौंड़ियों को इस बात की क्या ख़बर थी कि ' इस वक्त ज़ोहरा फ़लानी जगह पर बेहोश पड़ी होगी!' सो उस ओर तो कोई नहीं गई और इधर उधर झख मार कर सबकी सब लौट आई और डरते डरते सभोंने दस्तबस्तः अर्ज़ किया कि,-"जहांपनाह!

(१०) न०