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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/८२

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७४
(दसवां
रज़ीयाबेगम।


ज़ोहरा तो कहीं दिखलाई नहीं देती।"

यह सुन रज़ीया बड़ी लाल पीली हुई, पर वह कर क्या सकतं थी? क्योंकि जहां पर ज़ोहरा बेहोशी के आलम में पड़ी थी, वह जगह बेगम को भी नहीं मालूम थो; इसलिये वह अपने गुस्से के पी गई और एक लौंडी की ओर देख कर उसने हुक्म दिया कि,- "अयूब को जल्द यहाँ हाज़िर कर।"

"जो, इर्शाद!" कह कर एक लौंडी दौड़ी हुई बाग के बाहर, अयूब के देरे पर पहुंचा, जहां पर वह बैठा हुआ कोई किताव देख रहा था। लौंडी को देखते ही वह घबरा कर खड़ा होगया और बोला,-- "क्या है?"

लौंडी,-" आपको बेगम साहिबा याद करती हैं । हुक्म है कि फ़ौरन बाग में हाज़िर हो।”

"बेहतर, मैं चलता हूं, " यों कह कर अयूब ने अपनी तलवार उठा ली, और कुते के जेब में एक डिबिया और एक छोटा सा बमंचा रख कर वह लौंडी के साथ हो लिया।

सूरज डूब चुका था और रजोया बेगम तालाब के किनारे से उठ कर एक सजी हुई संगमर्मर की बारहदी में मसनद पर आ बैठी थी । गुलशन और सौसन भी उसके अगल बगल अदब से बैठी हुई थी और कई बांदियां तल्वारे लिये मसनद के पीछे अब के साथ खड़ी थीं। शमादान में मोमी बत्तियां जल रही थी और अगर की खुशबू बारहदरी में फैली हुई थी। इतने ही में लौंडी ने वहीं पहुंच, आदाव बजा लाकर दस्तबस्तः अर्ज़ किया,-"जहांपनाह! अयूबखां ट्रेदौलत पर हाज़िर है?"

रजीया,-" तूने उसे कहां पाया?"

लौंडी,-" हुजूर ! उसके देरे पर।

रजीया,-"हूं! वह क्या करता था?"

लौंडी,-" हज़रत ! वह कोई किताब देख रहा था।"

रजीया,-" अच्छा, उसे हाजिर कर।

"जो इर्शाद;" कह कर लौंडी लौटी और बाहर आकर अयूब को बेगम के सामने लेआई । अयूब ने आते ही जमीन चूम कर शाहानः आदाब बजाया और हाथ जोड़ कर सिर झुकाए हुए वह सामने खड़ा रहा । बेगम ने सिर उठा और उसके चेहरे की ओर