पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/९३

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।


इस बात का आसरा देख रही थी कि,-"निराला हा तायाकूब से मिले; ' क्यों कि. याक ब के पास उस समय अयूब बैठा हुआ था और उन दोनों में किसी बात पर बहस हो रही थी।

निदान, जब गत के ग्यारह बजे, अयूब वाकूब से विदा होकर अपने डेरे पर चला गया और तब ज़ोहरा को अपने मतलब गांठने का अच्छा मौका हाथ लगा। वह दबे पैर याकूब के बंगले के अन्दर घुस गई और उसकी ओर देख, मुस्कुराकर बोली-,-"बंदगी साहब!"

याक ब उसे पहिचानता था, इसलिए उसे देखतेही वह उठ खड़ा हुआ और ज़रा अदब से झुक कर बोला,-

"अख्खा ! आप हैं ! आइए तशरीफ़ लाइए; बंदगी, बंदगी!!!"

ज़ोहरा,-"इस आधी रात के वक्त, बेमौके, मुझे देख कर आप ज़रूर ताज्जुब करते होंगे!"

याकूब,-"बेशक, ऐसा ही है; और मैं समझता हूं कि किसी खास गरज से ही इस वक्त आपने यहां तक आनेकी तकलीफ़ उठाई होगी?"

जोहरा,-"जी हां, बात ऐसीही है और निहायत ज़रूरी है चुनांचे आप फ़ौरन कपड़े बदल कर मेरे साथ चलिए।"

याकूब-"मगर कहां, और क्यों?"

जोहरा,-"घिल्फेल, मुख्तसर तौर पर मैं इस जगह फ़क़त इतना ही कहना मुनासिब समझती हूं कि आज आपकी फ़िस्मत ने खबही पलटा खाया; क्योंकि सुलताना बेगम साहिबा आपकी बहादुरी पर निहायत खुश हुई हैं और सिर्फ इनाम देदेनेही से उन्होंने अपनी कदरदानी का खातमा नहीं समझा है, चुनांचे वे कुछ और आपको बख़्शा चाहती हैं, इसी वास्ते वे आपकी मुन्तज़िर हैं और मुझे उन्होंने इसवास्ते भेजा है कि मैं आपको अभी अपने साथ ले चलूं और उनके रूबरू पेश करूं।" ये बातें जोहरा ने इस ढंग से कही थीं कि जिनमें किसी तरह का खुटका न था; मपर फिर भी याकूब मनही मन ज़रा चिहुंका और कहने लगा,-

"मगर, बी जोहरा ! जनाब सुलताना साहिबा ने गुलाम पर जो कुछ इनायतें कीं, वे ही क्या कम थीं, जो सर्कार ने ताबेदार