पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/१९८

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प्रेम अरु जोग मैं है जोग छ?-आहे परयौं एक है रहैं क्यों दोऊ हीरा अरु काँच है। तीन गुन पाँच तत्त्व बहकि बतावत सेो जैहै तीन-तेरह तिहारी तीन-पाँच है ॥७९॥ कंस के कहे सौं जदुबंस को बताइ उन्हैं तैसे ही प्रसंसि कुवजा पै ललचायौ जौ। कहै रतनाकर न मुष्टिक चनूर आदि मल्लनि को ध्यान आनि हिय कसकायौ जो॥ नंद जसुदा की सुखमूरि करि धूरि सबै गोपी ग्वाल गैयनि पै गाज लै गिरायौ जौ। होते कहूँ क्रूर तौ न जानैं करते धौं कहा एतौ क्रूर करम अक्रूर हैं कमायौं जौ ॥८॥ चाहत निकारन तिन्हैं जो उर-अंतर ते ताको जोग नाहि जोग-मंतर तिहारे मैं । कहै रतनाकर बिलग करिदै मैं होति नीति विपरीत महा कहति पुकारे मैं ॥ तातै तिन्हैं ल्याइ लाइ हिय तें हमारे बेगि सोचिये उपाय फेरि चित्त चेतवारे मैं । ज्यों-ज्यों बसे जात दुरि-दूरि पिय प्रान-मूरि त्या-त्या धंसे जात मन-मुकुर हमारे मैं ॥८॥