पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/२५८

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यह विचारि नृप राज-भार मंत्रिनि सिर धाग्यो । दान मान सौँ तोपि सवनि इमि वचन उचार्यो । अव हम तप-हित जात गंग जालाँ महि आवै। होइ मिलन पुनि आइ ईस जौ आस पुरावै ॥ ५० ॥ वहुरि जाइ गरु-गेह नेह-जुत माथ नवाया। कहि मृदु वचन विनीत सकल संकल्प सुनाया ।। सिख आसिप बहु भाँति पाइ सव संसय सार्यो । करि प्रनाम उर सुमिरि ईस वन-मग पग धार्यो ॥ ५१ ॥ इमि कर्मवीर सहसा भवन त्यागि गवन कानन किया। छुट त्रद्धा साहस धीर अरु धर्म न कछु निज सँगलियौ ॥५२॥