पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४०३

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हसत हुलास बंक विधि-लेख की न रेख रहि जात तासु, दिव्य सिकता ले भव्य भाल में घसत जो । साँ विलास पर देवनि के, तेरौं तीर परन-कुटीर में वसत जो ॥२४॥ दुख-द्रुम-झाड़ काट घाड़ काट दोषनि की, पातक पहाड़ काट सब जग जानी है। कहै रतनाकर त्याँ जम के निगड़ काटे, करम-कुलिस-पाट काटि ना किरानी है। ऐसी साल नाहिँ नख माहिँ नर-केहरि के, ऐसी विकराल कालहू की ना कृपानी है । दंग होति धारना न होति निग्धार नै कु, गंग तव धार मैं घरचौ धौ कौन पानी है ॥२५॥ टेरि-टेरि कोकिल करति गुन-गान ताका, हेरि-हेरि ताहि हंस-अवली सिहाति है। कहै रतनाकर विसद बिरुदाली तासु, वायस-भुसुंडी साँ उचारी ना सिराति है । ताकी सुनि काकली बिहाइ पाप-राति जाति, जोहि-जोहि जम की जमाति डरपाति है। बैठत जो काक गंग-तीर-आक-ढाकनि पै, ताकी धाक नाक-नगरी मैं बँधि जाति है ॥२६॥