पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४२९

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होत्या मन माँहिँ मन राखिवा हमारौ जौ न, तो पै मनमान। एता करते दुलारौ ना। कहै रतनाकर विचार निरधारि यहै, ढीठ है उचारै तात विलग बिचारौ ना । आपना ही जानि कृपा कोप जो करौ सो करौ, आन मानि धारौ तौ कृपा हू रंच धारौ ना। के तो गहि हाथ विस्व बाहर निकारौ नाथ, कै तो विस्वनाथ निज नाथता बिसारौ ना ॥३८॥ पै पुन्य पाप दोऊ तो बनाए रावरेई नाथ, फेरि फलाफलहू फराए रावरेई हैं। कहै रतनाकर चहत पुन्य कौं तौ सबै, गाहक पाप के लखात बिरलेई हैं॥ दोऊ मैं न भेद पै लखात हमकाँ है दोऊ सुख साधन के वाधन बनेई हैं। दुसह बियोग-ज्वाल-जरत वियोगिनि कौं, अमर-अबास सुर-बास एक सेई हैं ॥३९॥ साई सो किए हैं जो जो करम कराए आप, तिनपै भले की औबुरे की छाप छापौ ना । कहै रतनाकर नचाइ चित चाह्यौ नाच, काच-पूतरी पै गुन दोष आप आपो ना ॥