पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/४५०

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ढारै नैन नीर ना सँभारै साँस संकित सा, जाहि जोहि कमला उतारयो करै भारते । कहै रतनाकर सुसकि गज साहस के, भाष्यौ हरै हेरि भाव आरत अपार ते ॥ तन रहिबे को सुख सब बहि जैहै हाय, एक बूँद आँस मैं तिहारे जो बिचारते । एक की कहा है कोटि करुनानिधान प्रान, वारते सचैन पै न तुमको पुकारते ॥८॥