पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(८) महाराज छत्रसाल e देव-द्विज-द्रोहिन के सनि उसांसनि से, मानामि गान को संताप सियरा में। कहै स्तनाकर देला भट रान: मा, जमन-निसानी असि-पानी से बहाम॥ श्रीपनि सहाय सौं दिलीएति को छत्र सालि, छत्रसाल नाम निज साग्थ बनाऊँ में। चपल चकत्ता की महत्ता अरू सत्तापि, चंपन को नंदन अमंद कहवाऊँ मैं ॥१॥ , कढ़त देलनि के ग्लनि के नारा रन. बल्लव धुखाग निमि पाण थहरत हैं। कह रतनाकर सपीर पा जादनि मीर मीरजादनि धार भारत 11 निपट निसंक बंक बोरनि के जथनि , मूथन ससंक लंक त्यागि ढारत है। मुगल पठाननि की सत्ता औं महत्ता मिटे, कत्ता कहै छत्ता के चकत्ता बहरत हैं ॥२॥