पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५४५

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सेन लै तुरंगी संग सेनप फिरंगी बीर, जंगी नारि धीर धाइ धारिवौ विचारचौ है। कहै रतनाकर भँडेर ग्राम ने घेरि, राहु को रिसाला हाला चंद पर पारयौ है । रानी लच्छमी त्यौँ रन-दच्छता प्रतच्छ करि, कावा काटि धावा कै समच्छ ललकारयौ है । ठोकर दै अस्व कौँ उड़ाइ बेगि वोकर पै, तीखी तरवारि सौ बिदारि महि डारयौ है ॥३॥ पेस पेसवा की औ नबाब की न ताब लच्छि, भेस करि लच्छमी प्रतच्छ मरदाने को । कहै रतनाकर सवार है तुरंगम पै, संग लै रिसाल बिकराल लाल बाने कौ ॥ दोऊ कर भारति झपटि करवार-वार, फारति फुरत फौज-फर फिरगाने को। मंद करि दीन्हौ धावा धवल अरिंदनि कौ, बंद करि दीन्हौ दीह दंद तोपखाने कौ ॥४॥ ओलनि लौँ गोलनि की बाढ़ से धिया की परें, ताब गई तरकि नवाब पेसवाजी की। कहै रतनाकर त्यौँ लच्छमी उमंगि बढ़ी, संग लिए बाहिनी बिकट बर वाजी की।