पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५८७

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ताहि सरुझाइ उझकाइ सीस टारो बाल भाव यह चित पै सचाव चढ़ि आयौ है । मानौ मंद राहु के निवारि तम फंद बंद अमल अमंद चारु चंद कढ़ि आयौ है ॥५३॥ १५-४-३१ श्रावत ही सुधि रावरी रंचक हजार हुलास भरै है। श्रो रतनाकर नाम लिऐ सु उसास है आनन आनि अरै हैं । जानि यहै मन में रतनाकर रावरे पंथ की धरि धरै है। राखत आँखिनि मैन रहै अँसुवा बनि पाइनि आनि परै हैं ॥५४॥ १५-४-३१ कोऊ उठ काँपि कोऊ रहति करेजो चाँपि कोऊ झाँपि ठौरही ठगी सी मढ़ि जाति है। कहै रतनाकर त्रिभंगी को सुधंग चाहि गोपिनि के और ही उमंग बढ़ि जाति है । रीमै काहि जोहि काहि चाहत रिझैबौ मोहि सो तौ बात त्यौरि सौन ब्यौरि पढ़ि जाति है। जितै जितै चारु चितै भ्रकुटी बिलासै कान्ह तित तिते काम की कमान चढ़ि जाति है॥५५॥ २४-४-३१