पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५९२

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पाइ निज तारौ नैन बन चवाइनि के खुलि गए द्वार कारागार के दरी के है । नींद सौंपि आपनी प्रगाढ़ पाहरू गन कौं जागि उठे भाग बसुदेव देवकी के हैं ॥६॥ ५-९-३१ श्रावन लगी है दिन द्वैक तै हमारे धाम रहै बिनु काम जाम जाम अरुझाई है। कहै रतनाकर खिलौननि सम्हारि राखि बार-बार जननी चितावत कन्हाई है। देखीं सुनी ग्वारिनि कितेक व्रज बारिनि पै राधा सीन और अभिहारिनि लखाई है। हेरत ही हेरत हरचौ तो है हमारौ कळू काह धाँ हिरानौ पै न परत जनाई ॥६९॥ १९ -१०--३२ राका रजनी की सज नीकी गंग की थौं लस मानौ मुकता के भरे थार थलकत हैं। कहै रतनाकर याँ कल धुनि आवै होति मानौ कलहंसनि के गोत ललकत है ॥ हिलि मिलि मंद लहरी के माल-जालनि पै झिलिमिल चंद के अनंद झलकत हैं। माना चारु चादरे बिसाल बादले के वने पवन प्रसंग सौँ सुडंग हलकत हैं ॥७०॥ १५-२-३१