पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/८७

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पहला सर्ग सुभ सरजू-तट बसति अवधपुरि परम सुहावनि । बिदित बेद इतिहास माहि कलि-कलुष-नसावनि ।। दिव्य-दिनेस-बंस-महिपालनि की रजधानी। सब-सोभा-संपन्न सकल-सुख-संपति-सानी ॥१॥