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रवीन्द्र कविता-कानन
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नूपुर प्रत्येक पदक्षेप के साथ मानों उसी रागिनी की ताल दे रहे हैं।

फिर महाकवि लिखते हैं—

"धरिया राखियो सोहागे आदरे
आमार मुखर पाखीटी—तोमार
प्रासाद-प्रांगणे (१)
मने करे सखि बांधिया राखियो
आमार हातेर राखीटी-तोमार
कनक-कङ्कणे।" (२)

अर्थ:—मेरे बहुत ज्यादा बकवास करने वाले इस पक्षी को सोहाग और आदर के साथ अपने प्रासाद के आंगन में पकड़ रखना (१)। ऐ सखि, मेरे हाथ की इस राखी को याद करके अपने सोने के कंगन के साथ लपेट लेना (२)।

"आमार लतार एकटी मुकुल
भूलिया तूलिया राखियो—तोमार
अलक-बन्धने।
आमार स्मरण-शुभ-सिन्दुरे
एकटी विन्दु आंकियो—तोमार
ललाट चन्दने।"(२)

अर्थ:—मेरी लता से एक कली भ्रमवशात् तोड़ कर अपने जूड़े में खोंस लेना (१)। मेरी स्मृति का शुभ सिन्दूर लेकर, अपने ललाट के चन्दन के साथ, उसका भी एक बिन्दु बना लेना (२)।

अपनी लता से नायिका को भ्रमवशात् या एकाएक (भूलिया) एक कली तोड़ लेने के लिये अनुरोध रके 'भ्रमवशात्' या (भूलिया) शब्द से, कवि नायिका की भावुकता सिद्ध करता है। वह जानबूझ कर उससे कली इसलिये नहीं तुड़वाता कि उसकी नायिका उगी की चिन्ता में बेसुध हो रही है। अतएव संस्कारवश कली को तोड़ कर जूड़े में खोंस लेने के लिये अनुरोध करता है,—'भूलिया'—भूल कर, उसके उसी भाव की सूचना देता है। उसकी नायिका का चन्दन-बिन्दु शोभा दे रहा है, उस ललाट में अपनी स्मृति के सिन्दूर का एक बिन्दु और बना लेने की प्रार्थना; हृदय के किस कोमल परदे पर अंगुली रख कर बोल बिल्कुल साफ खोल देगी है, पाठक ध्यान दें।