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रवीन्द्र-कविता-कानन
 

बालिका (नवयौवना तरुणी) को नवीन संसार में बुलाने का अर्थ यही है कि, महाकवि उसके संयोग की सूचना देते हैं। उनका यह भाव और साफ हो जाता है जब वे कहते हैं—

"गांथि लह अंचले नव शेफालिका
अलके नवीन फूल मंजरी।"—

मलिन मालिका को छोड़, अंचल में नई शेफालिका की माला गूँथ लेने और बालों में पुष्प-मंजरी के खोंसने का इशारा सूचित करता है संयोग का समय अब आ गया। अपनी दु:खिनी सखी को उसके प्रियतम के पास महाकवि इस तरह कवित्व-पूर्ण ढंग से ले चलते हैं।

(संगीत-२)

"बाजिलो काहार बीणा मधुर स्वरे
आमार निभृत नब जीवन परे ॥१॥
प्रभात-कमल-सम
फुटिलो हृदये मम
कार दुटि निरुपम चरण तरे ॥२॥
जेगे उठे सब शोभा सब माधुरि
पलके पलके हिया पुलके पुरी,
कोथा होते समीरण
आने नव जागरण,
पराणेर आवरण मोचन करे ॥३॥
लागे बुके सुख-दुखे कतो जे व्यथा,
केनने बुझाये कबो जानि ना कथा।
आमार वासना आजि
त्रिभुवने उठे बाजि,
काँपे नदी वन-राजि वेदना-भरे ॥४॥
बाजिलो काहार वीणा मधुर स्वरे।"

अर्थ :—"मेरे निभृत (निर्जन) और नवीन जीवन पर यह मधुर स्वर से किसकी वीणा बजी? ॥१॥ प्रभात-कमल की तरह मेरा हृदय किसके दो निरुपम चरणों के लिये विकसित हो गया? ॥२॥ पल-पल में हृदय को पुलक-पूर्ण करके सम्पूर्ण शोभा—सम्पूर्ण माधुरी जग रही है। न जाने समीर कहाँ से