पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१०३

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रश्मि रेखा तुम हो मम अस्तिष स्वामिनी मम मन धन की स्फटिक दामिनी तुम मेरे कर्मठ जीवन की- हो विश्राति प्रपूण यामिनी मेरे इन उत्सुक हाथो को- अपने युग पद गह लेने दो आज तनिक कुछ कह लेने दो। ३ मेरे प्राणों की आकलता- मेरे भावों सकुलता- कैसे व्यक्त करू १ किमि मफटे--- उछवासों की गहन विपुलता ? तनिक देर तो अपने द्वारे-- मुझ जोगी को रह लेने दो! भाज रप कछ कह लेने दो। (४) मुझसे पूछो हो मैं क्या हूँ? स्वामिनि मैं तो एक व्यथा हू मैं तष नयनों के दर्पण में-- तव सनेह प्रतिबिम्ब कथा हू मैं आँस बन सोम मद्र सा वह जाऊ तो बह लेने दो आज रंच कुछ कह लेने दो।