पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१०५

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रश्मि रेखा लला उठ उठ कर गिरता है धूल भरा हसता फिरता है लालन की इस अस्थिरता में थिरक रही जग की स्थिरता है आज विश्व की शशवता मम ऑगन आई बन निरगुन रुन-सुन सुन-सुन रुजुन अनुन । फिलका मेरा लाल कि मेरे हिय में हुआ उजेला सा रोया रंच कि विश्य हो उठा मेरे लिये अकेला सा आँसू कण बरसात आना लार तार टपकात जाना मेरे घर आँगन में आली रुदन हास्य का भरा खजाना मेरे स्मरण गगन में गूज रही है हलकी छुन छुन छुन रुन झुनझुन सुन रुनुन अनुन । षड़ी भाग्य शालिनी बनी मैं हिय हुलसा मन मस्त हुआ मेरा अपना पन मेरे नहें स्वरूप में व्यस्त हुआ अस्त हुआ अस्तिव अलग सा वह मिट गया स्वप्न के जग सा मली खुट गई री मैं जब से आया है यह कोई ठग-सा मुझे लूट ले चला किलकता मेरा छोटा सा चुनमुन रुन सुन झुन झुन-रुनुन नुन ।