पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१०६

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रश्मि रेखा नया मातृ भाषा को अपना पन खोकर पाया है मैंने अपना रूप उसे गोद में लेकर मेरा हुआ स्वरूप अनूप नया एक हाथ में अभिलाषा को दूजे में सारी आशा को बाँध मुट्टियों में वह डोले करता सफल माँ माँ ! मुख से कहता है पॉजनियों बजती हैं टुन हुन रुन झुन झुन सुन रुनुन-सुन्न । (६) आज विश्व शैशव अपनी गोदी में खिला रही हूँ मैं सुविगत पतमान मधुरस भाी को पिला रही हूँ मैं शत शत सस्कारों की धारा मेरे स्तन से बही अपारा बनकर पयस्विनी करती हू मैं भविष्य निर्माण दुलारा मेरे शिश में प्रगटी मानवता की रुधिर पुरातन धुन रुन-सुन-झुन शुन रुनुन झुनुन । जिला कारागार फैशायाद सन् १९३२ }