पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१०८

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रश्मि रेखा दे रही धडकन हृदय की —द्रत प्रपद की ताल हिचकियों से उठ रही है स्वर-तरग विशाल आह की गम्भीरता में हैं मृवा-उमज निदुर हाहाकार में है चन का रा भङ्ग अनारक्ति का दे गया यह दाग जग गया हाँ जग गया वह सुप्त अश्रत राग! प्यार-पारावार में अभिसारिका सी लीन---- बावरी मनहार नौका डुल रही प्राचीन क्षीण बधन हीन जजर गलित दारु-समूह- पार कैसे जाय । है यह प्रश्न गूढ दुरूह । स्वर तर में बढ़ रही है बद रहा अनुराग जग गया हॉ जग गया है सुप्त अश्रत राग । युगल लोचन में मदिर रंग छलक उठता निठुर तुमने फेर ली क्यों आँख एकाएक सिहर देखो कनखियों से अरुण मेरे नन सकुच शरमा कर कहो कुछ हाँ नहीं के बैन भर रहा है सजनि फिर से यहाँ शुष्क तडाग जग उठा हॉ जए उठा है सुप्त अश्रत राया op