पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/११

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रश्मि रेखा ग्रम गातावली कृष्ण गोतावनी भो लिखो है जिसका कवि अन्य पुरुष में अदृश्य है। सांकन के नव सग म उमिला के भी गीत है और वापर में भी गोत है। परतु उनमें उत्तम पुरुष वानी शैली नहीं है। भारत भारती में काय पुरुष का अदृश्य रूप नहीं है। वास्तव म पूर्ण रूप से अदृश्य कवि तभी रह सकता है जब वह या तो नाटक खि या काई प्रबध काव्य लिन । परतु बडेपो प्रबध काव्या के भीतर भी बीच-बीच की पक्रिया म वह खुल जाता है ना का के पाना म भी उसका लगाव सामने आ जाता है । यह उसको कला को दुबलता भल हो कही जा सके परतु बड़ी-बड़ी सम्माय कृतिया म भी यह असावधानी उपस्थित है। अपनो अनुभूतियों पर आधारित अपने बलवान मतध्या से अपनी परियों का बचाये रखना बड़े सयम की बात है। मवाना मार मा यसाया को भार परोक्ष भाव से तटस्वरूपेण वस्तु फो मोषना एक ऊची कला अवश्य है। अ यथा कवि की देन का मौतिक मूल्य ही कुछ न रह जायगा। इस अहापोह को काल इसलिये किया गमा है कि स्वानुभूति और यामा बिभद मनिक नहीं है। उई का स्थूल भद' समझना च हिए । पाश्चा म समीक्षका ने एक यात और कही है। वे कहते हैं कि कवि के विकसित इस परिपश्व रूप पूर्ण रूप को देन गोत हुआ करत हैं। अनुभूतिया का सग्रहालय जब इतना पूर्ण हो जाता है कि वह कवि में अट नहीं पाता तो क्ह गोवा म इनक पड़ता है। अनुभूतिया की यह कोष पछि प्रायु के उतार के साथ ही सम्भव है। अतएव गीता की मृति भी कवि के अतिम युमा की देन होती है। प्रारम्भ प्रयथ काव्य अयया अन्य प्रकार के का यों से होता है और अत गीता से किया जाता है। कवि स्वर्ग किसी आकार प्रकार के बधन से वषा नाही समझता । उमुक्त हो कर उत्तम पुरुष को उमस शैली में गाने लगता है। यह कवि जीवन का इतिहास है। यह सत्य है कि अनुभूतिया को अमीरी श्रायु के विस्तार के साथ आती है और यह भी सत्य है कि कवि अपने परिपक्व जीवन म आकार बोधिनी सीमामा को परवाह नहीं करता। उसी प्रकार यह भी सत्य है कि गीत तत्व प्राद जीवन म अधिक अधिकार कर लेता है। परतु मह सत्य नहीं है कि प्रद जीवन में ही गीत लिखे जाते हैं अथवा प्रौद जीवन में बात लिखने का केवन यही कारण है अथवा समी कलाकार गीत ही अत म निहते हैं प्रबध नही लिखते। यह भी पूर्ण रूप से सत्य नहीं कि अनुभूतियों को बाढ़ के कारण हमेशा प्रबन काश्य से