पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/११३

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रश्मि रेखा मैं तुमको निज गीत सुनाऊँ कौन साथ है अब मम हिय म प्रियतम तुमका क्या बतलाऊँ? केवल यह कि तुम्हें बिठलाकर सम्मुख मैं निज गीत सुनाज । बनकर गायन-चन्द और धनि प्रिय मैं तव सम्मुख मडराऊँ ।। (१) इतना तो तुम भी जानो हो कि है प्रेरणा सजन तुम्हारी जो कि हृदय में मेरे क्षण क्षण छलक रही है रसकी झारी । वरना मुझ परवश का क्या बस । क्या मेरी कविता बेचारी ? छोड़ तुम्हारा अनुकम्पाश्रय बोलो आम किधर मैं जाऊँ ? आओ मेरे सम्मुख प्रियतम मैं तुमको कुछ गीत सुनाऊँ ।