पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुम्हें सुनाता अवसर मैंने (२) रश्मि रेखा अब तक तो परोक्ष में मैंने अपने गीत गुनगुनाए है ऐसे मीठे पाए है। किन्तु सुना है मैने तुमको मेरे ये भाए हैं इसीलिये यह अभिलाषा है कि मैं तुम्हारे सम्मुख गाऊँ यही साध हे मेरे प्रियतम सुमको अपने गीत सुनाऊँ । गायन तुम बैठो मम सम्मुख अपना चीनाशक पीताम्बर पहने और बनें अङ्ग लियाँ मेरी तव मजुल चरणों के गहने तुम आकण सजाए वेणी विहस विहस दो मुझे उलहने यही साथ है मेरे प्रियतम तुम रूठो मैं तुम्हें मनाक और साध क्या है ? बस इतनी कि मैं तुम्हें निज गीत सुनाऊँ । सुनकर मेरे गीत कभी तो तव लोचन डब-डन भर आए और कमी मेरे नयनों से कछ सचित व झर जाएँ यो मेरे सगीत रसीले तव मृदु चरणों में ढर जाएँ यही मनाता हू कि कमी मैं गायन स्वन लहरी पन छाऊ यही साथ है प्रियतम मेरे कि मैं तुम्हें निज गीत सुनाऊ । (५) कर तुम्हारे श्री चरणों में गीत सुनाकर जन मैं यन्दन सहला देना मेरे धवल केस है जीवन-नन्दन । मैं प्राचीन नवीन बनू गा होंगे विगलित मेरे बधन यह घर देना कि मैं सदा नव-नव गीतों से तुम्हें रिझाऊँ यही साध है प्रियतम मेरे कि मैं तम्हें फछ गीत सुनाऊँ । के द्रीय कारागार बरेली दिनांक ११ दिसम्बर १६३ } सब