पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/११५

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रश्मि रखा भीग रही है मेरी रात भीग रही है मेरी रजनी भीग रही है मेरी रात मेरे कटी कपाट अनाहत ठिठर रहे हैं मेरे गात भीग रही है मेरी रात। (१) यह अधियारी रास हुई है अति काली कमली सी आज योज्यों भीगी यो त्यों भारी होती गई यथ बिन काज । अब दुषह है नैश भार यह दुवह है यह ऋक्ष समाज कट जाती यह गहन यामिनी यदि तम करते होत बात । भीग रही है मेरी रात। ऋक्ष-तारे ऋक्ष समाजन्तारक समाज ।