पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/११६

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रहिम रेखा (२) ना जाने कितनी लबी है मेरी निशीथिनी नि सार। अभी और कितना होना है मुझको यह तम भार अपार ? क्या जानू कब फैलाओगे तुम अपमा योना विस्तार ? हहर रहा है हिय यो हहरे अनिल विकपित पीपल-पात । भीग रही है मेरी रात। क्या बतलाऊ क्या होता है तम में एकाकी का हाल ? मैं ही जान हूँ कैसा है यह तमस्विनी काल कराल । है घनघोर अँधेरा चहुँ दिशि काँप रहे हैं सब दिक्पाल काँप रही है अबर भर में तारों की यह लप-झप पात ! भीग रही है मेरी रात । (५) तम-अर्णव में ही होता है क्या चेतन का प्रथम विकास? क्या तम आवरणाहत होकर तुम आओगे मेरे पास ? क्या घनघोर तिमिर में ही तुम हुलस करोगे रास विलास? मैं समझा !! यह तम है मेरे नव-जीवन का उप-उद्घात !!! तो फिर भीगे मेरी रात। केन्द्रीय कारागार बरेली दिनांक १२ दिसम्बर १६ ३