पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/११८

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रश्मि रेखा उन नयनों में मैंने देखी परम गहन चितन की छाया उनमें मैंने अवलाकी है स्वामार्पण की ममता माया मैंने देखा है तवटा में चिर सनेह बरदान समाया । प्यार रार मनुहार भरित है औ उनमें है मरी उदासी ।। पर तुम तो कुछ कहो कि क्या है ? बोलो दूर देश क वासी । (३) अहनिशि सन लिये फिरता हू प्रिय मैं उन नयनों की स्मृतियों जिनके स्मर-रस से हैं सिंचित मेरे जीवन की सब कृतियाँ वह स्मृति ही मेरी यात्रा की निर्धारित करती है सृतियाँ बना चुका हू मग अवलबन उस स्मृति को मैं सतत प्रवासी क्या क्या है तब हग सपट म १ वाला दूर देश के पासी । मेरे प्रिय अब कब तक होंगे उन नयनों क मगल दर्शन ? हुलस कराग कष निज जन पर उन नयनो से मधु रस-धर्षण ? कब फिर उ हे निरख कर हागा मेरे रोम-राम का हर्षण ? कब तक तुम तक पहुँचू गा मैं निपट प्रवासी बारहमासी ? क्या है तव नगनों क पद में ? बोलो दूर देश के वासी । केन्द्रीय कारागार बरेली विनोफ १३ दिसम्बर ५६३ } ८१