पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१२०

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रश्मि रेखा (२) तुम्ह याद है । वह चपक भी सिहर उठा था ये तव स्वन सुन । और चहाए थे तव शिर पर उसने निज प्रसून कुछ घुन चुन ।। सुन पडती थी वन से आती गायों की घटी की टुनटुन झूम रहा था साध्य समीरण नभ म र जित थे बादल दल मेरे प्रियतम मम चिर मगल । (३) उसी सॉझ के आश्वासन की स्मृति पर है अलपित मम मन आर कर रहा हू उसके बल प्रिय में अपना जीवन यापन अव करणे सतत करू मैं अपनी गहन वदना का विज्ञापन ? फिर भी बहत ही आत है बरबस मेरे आसू अविरल । मरे प्रियतम मम मधु मगल । यह अति अमिट भाल रेखांकन यह परषशता विधि विधान यह इनसे बाई कैसे झगडे ? मानव तो है अल्प प्राण यह पर मानव निज भाग्य विधाता --ऐसी ध्वनि पड रही कान यह ।। हाँ प्रिय मैं अग-जग का स्वामी जब तुम हो मेरे चिर सबल || मेरे प्रियतम मेरे मगल । केन्द्रीय कारागार बरेली दिनांक १ दिसम्बर ६३) 27