पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१२२

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रश्मि रेखा (३) मत आने दो अगर-अरगजा पोवा चन्दन गध यों उमड़ेगा मन अम्बर में उनका अङ्ग-पराग यहाँ क्या होली ? कैसी फाग? (४) कह दा इस बैरिन कोकिल से कि वह रह चुप साथ वरना गूज उठेगा हिय में उनका पञ्चम–राग अरे क्या हाली । कैसी फाग! षडे जतन से सुला सक हम स्मृतियों की यह भीर यौहारों के मिस न टटोलो वे सब ब्रण वे दाग हमारी क्या हाली? क्या फाग ? क्यों न भस्म कर दते हो ये सब झूठे पञ्चाङ्ग ? रहे न होली और दिवाली रहे न स्मृति अनुराग ! अरे क्या होली ? कैसी फाग ? (७) काल-खण्ड ये म प दण्ड बन मथत है हिय सिधु आँखों क तट तक आत है ये समुद्र के साग आज क्या होली ! कैसी फाग ?