पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१२४

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रश्मि रेखा हम समझे थे है चिरस्थायी यह सनेह की डोर अब जो देखा तो वह निकली कोरा कचा ताण कहो अब क्या होली? क्या फाग! (१४) हम बन्दी आजीवन बदी पराधीन सन क्षीण हम को कौन हस हस देगा दान अखण्ड सुहाग १ हमारी क्या होली ? क्या फाग ? कर दो स्वाहा बची खुची यह अपनी साध नवीन यों ही आए पल दो यों ही अब क्या रग रस ? अरे क्या होली ? कैसी फाग ! मिला जेश उवाच होलिकोत्सव दिनांक १माश्च १६४३ } CU