पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१२७

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रहिम रेखा ये मुझसे कहत है उनकी है मदमाती आँखें भारी भारी है हग खजन की पाँस कहते है तुमको या यदि हम स्मरण सुधा रस चाख ? मैं कहता हू री विस्मृति इन पगलों को समझा जा आ जा रानी विस्मृति आ जा। कहते ही रहत हैं मुझसे उनकी सरस कहानी करते ही रहते हैं निशि दिन ये अपनी मनमानी कष तक सहन करू री विस्मृति में पनकी नादानी ? आकर इन्हें सुलाकर इनसे मेरा पिण्ड छुड़ा जा आ जा रानी विस्मृति आ जा। जिला कारागार उमार दिनाइ २ मार्च १९४३ }