पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१३

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रश्मि रेखा मैंने गीत नहीं लिखे परंतु अपनी बात और अपने अनुभता को एक लम्बे तनाव के मौतर किसी बड़े आकार प्रकार में सामने रखने में श्लथ और कातरता मालूम होती है। माथु के उतार में त परता और चौकमापन के लिये बुद्धि ज दी से प्रत नहीं होती पथपि उसकी अनिवार्य आवश्यकता एक महान का प म पड़ती है। कुछ लोगों का यह भ्रम है कि गीता का कार्य अत्यात सक्षेप रूप में किसी तथ्य को सामने रखना है । गत में गेय तत्व की ही प्रधानता होनी चाहिए। उसम सक्षिप्त करने की कशा अपेक्षित नहीं है। सध्य के प्रकार का छोटा होना दूसरी बात है बार बड़े तथ्य को छोटे करने का प्रयास करना दूपरी मात है । गीत लम्बे और बरे भी हो सकत है। वर्तमान कविया के घड़े लम लम्ब गीत देजे गये है। परंतु गात एक सीमा से वो नहीं हो सकते । सगीत के भक में बधा हुना तथ्य उतने ही काल तक मन पर प्रभाव डाल रह सकता है जितने समय तक श्रोता संगीत मय रह सक और त य उचट जाय। गीत म एक तथ्य के साथ साथ एक ही निवे न एक ही रस एक ही परिपाटी होती है। उसका प्रवेश मा एक ही प्रकार का होता है । अतएव वह मन का फेवल कुछ समय तक के ही लिये अपनाए रह सकता है । बस गीत की लम्बाई भी उतनी ही हानी म्याहिए जितनी ससकी रमण-उपयागिता है गीता में इधर दाशनिक चितना का समावेश अधिकाधिक हो रहा है। अहाँ एक और विचार के किरकिरे अंतराय आ जाने से सगीव-रस कुछ धीमा पड़ जाता है वहाँ दूसरी ओर क्षेत्रल संगीत के सहारे चलने वाले गीता से अलग हट कर भये प्रकार के गीतों का श्री गणेश हिंदी शुम लक्षण है। चिंतना काथ्य से सोहागिल भी हो जाती है और उस बिगाड़ भी देती है। यदि कोई क्विार खराड कवि को या मसाद नहीं हुआ है यदि कोई मानसिक प्रयय काव म भावमय हो कर धुलमिल नहीं गया है तो एसे चित्र सामने नहीं पा सकत जिनम पुलावट हो । यह केवल गयमय तुकपदी सामने रख सकेगा। भावुकता में डूबी हुई चिंतना ही किसी गीत का विषय हो सकता है। इसके लिये समय की अपेक्षा हाती है। जिस प्रकार युगा के साथी होने के कारण चादनी भरने हरी वनस्थली न्यद सूर्य और अपना अनेकार्थी भायुक्ता के साथ मानव हमारे पुरान साथी हैं और हम इनका रागमय वर्णन सामने रख सकते हैं उस प्रकार और उस घुलावट के साथ हम भाज बिजली का पंसा कीजरेटर फाउण्ठेन पेन अटैची केस पाईसिकल इत्यादि 1