पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१४

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रश्मि रेखा इत्यादि क अपर्याप्त सहवास से यथेष्ट भावमयता के अभाव में उत्तम चित्र सामने नहीं रख सकते। जो बात रूप-व्यापारा को है वही बात चिंतना के प्रत्ययों की है। पर्याप्त समय के अभाव म ये भान जगत में घुल मिल नहीं पात अतएव किसी गीत को कच्चे विचार काव्य नहां मना सकते। बालकृष्ण इस दोष से बरी है। उनम अभिव्यजन का कैतव भी नह है। उनमें कथन की सुदरता सवेदना मक ही है परन्तु वे छायावाद से दूर ही है। उजमो हुई सरलता एक स्थान पर रहने अवश्य लिखा है पर तु ऐसे वाक्य कम हैं। समासोक्ति तथा अन्योक्ति का पुराना प्रयोग भी उनमें नहीं है। वितमा खड दुलह नहीं है। बिचारा के स्वरूप सरल और बोरगम्य है। प्रश्नवाचक वाक्या मैं कुछ प्रश्ना को कितनी मामिकता से रक्ला गया है। श द-स्पक्ष रूप गध रस वश है क्या जीवन ? सबदन पुज-रूप हैं क्या हम सब जग जन ? अमल अतीविता ह क्या केवल भ्रम साजन ? अपनी सेव्रियता क्या मनुज सकगा न माग ? अगराग! इसके प्रश्न प्रत्येक चिंतन शील प्राणी के शाश्वत प्रश्न है। वास्तव में अपनी सेन्द्रियता यागना मानव के लिए दुस्तर है यत्ततोऽपि कौंतेय पुरुषस्य विपश्चित अज न कु ती पुनथे मानन मयं ना की सतान जो है। और भागे देखिये-- अतर में जलता है जो यह चेतना दीप विसकी कमा से है कुसुमित उपकरण नीप सेद्रियता का आई उस दीपक के समीप ? उस निगु ण का गुण है पूर्ण मुक्ति चिर विराग! प्रियतम तर अंग-राग । प्रियतम तव ।