पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१५

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रश्मि रेखा भविष्य के सुयोग के लिये जीवन के मगल के लिये सर्च गमन के लिए कितनी सुदर प्राधना है। इसमें कोरी भाकांक्षा नहीं है साहित्यिक प्रतिष्ठा भी है- इस सूख अग जग-मरुथल में दरक बहो मेरे रस निझर अपनी मधुर अमिय धारा से पायित कर दो सकल चराचर ना जाने कितने युग-युग से प्यासे है जीवन सिकता-कण मन्वन्तर से अत्तरतर में होता है उद्दाम तृषा रण निपट पिपासाकुल जड जगम प्यास भरे जगती के लोचन शुक कण्ठ रसहीन जीह मुख रुद्ध प्राण सतप्त हृदय मन मटो प्यास त्रास जीवन का लहरे चेतन सिंहर सिहर कर इस सूखे अग जग मरुथल में उरक बहो मेरे रस निझर । जतनी रस श यता दानवी जग-जीवन म कैसे आई? वालामुखियों की ये लपटें जग मग में किसने भडकाई ? पढ़ा सृजन का पाठ प्रकृति ने । अह भारना तब उठ धाई अरे उसी क्षण से कण कण में मृषा तृषा यह आन समाई। फैले अनहकार भावना मिटे सकुचित सीमा अत्तर इस सूखे अग-जग-मरुथल में ढरक बहो मेरे रस निझर । भाज शिंजिनी आ मापण की चढ़ जाए जीवन अजगव पर अवं लक्य घेधन हित छूटें बलिदानों के नित नव नव शर कतमय अमृत-कुम्भ विंध जाये जब होहन बाणों की सर-सर ६