पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१४२

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रविम रेखा एक धाग म समूचे प्राण अटकाकर हसे तुम और इन भव-बधनों में अयश-सा मुझको कसे तुम- ला निबल इस बार तो अच्छे से सम । हाँ फसा हूँ पर मुझे क्यों खींचत क्यों तानत हा? अन्तर्यामिनी मम वदना तम जानत हो । बोल ? प्राण मृत्तिका के पात्र में है भडक उट्ठी अमित “बाला यह नहीं है हालिका प्रिय यह नहीं है दीप माला जल उठा ह मैं स्वय । है मम चिता का यह उजाला मुस्कुरात हा ' इसे क्या लेल ही अनुमानते हो? अन्तयामिनी मम घेदना तम जानत हो । माण पिला कारागार उन्नाय दिनांक ११ नवबर १६ २ }