पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१४३

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रश्मि रेखा बिथा या हिय की बरनि न जात विथा या हिय की परनि न जात छिन छिन गिनत कलप शत बीते गजहुँ न हात प्रभात बिथा या हिय की बरनि न जात। अति अज्ञेय अवैध निमिर धन छाड़ रयो चहुँ ओर उडत उड़त मन पछी थायौ मिल्पो न निशि को छोर हिम छायौ घन घोर अँधेरौं कपत प्राण की डोर फछु नहिं समुझि परत अब कितनी और वधि रही रात । विधा या हिय की परनि न जात ।