पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रश्मि रेखा माघ-मेघ (कलिंगड़ा) अपर निशि काल में माघ के मेष ये निराहत अतिथि से आ गए री उमड घन घोर जल धार बरसा रहे गा रहे अटपटा । अपर । (२) तडित विष त् छटा फटफटाती चली कप रही गगन वक्षस्थली री जग गई विगत पाषस-व्यथा की शिखा मेघ मालार स्वर गए री । अपर 1