पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१४८

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रपिम रेखा क्यों उलझे मन १ निरख निरख कर चहुँ विशि तम घन क्यों लरजे हिय ? क्यों उलझे मन ? लख नम आँगन गहन तमोमय क्षण क्षण क्यों अकुलाए लोचन ? ये कजल के कोट भयानक उठे हुए हैं भू से नम तक दर्निवार यह घोर अध तम घिरा रहेगा बोलो कब तक ? क्यों अकुलाते हा मन मेरे ? देखो बाट प्रभा की अपलक । हिम में भर उसाँस आशा की गाओ भैरव के मगल स्वन! निरख' गहन धनतिमिर आवरण क्षण-क्षण क्यों अकुलाएँ लोचन ?