पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१४९

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रश्मि रेखा आज ध्वान्त आका त मेदिनी आज दिशा दुर्दात तमामय । आज तिमिर के ये दल के दल पूण कर चुके ज्योति पराजय !! पर क्या तुमने नहीं सुनी है ज्योतिमय शख ध्वनि-जय जय ? लखो । दुर वह विभा आ रही इयामा क तम-पर से छन छन । लख-लख वत्त मान यह तम धन क्यो लरजे जिय ? क्यों उलझे मन ? मगलमय क्षण दूर नहीं है अरे निकट ही पह प्रकाशमय और सदा ही ता होता है अरुणा और तमिस्रा का रण । जो डूबे हैं आज तिमिर में तुलसेंगे वे ही रज कण कण ये भूधर यह भू यह अबर सब फिर पाएगे अपनापन निरख निरख कर चहुँ दिशि तम धन क्यो लरजे जिय । क्यों उलझे मन ? (४) भूल गए क्या प्रथम मात का वह उल्लास लास १ वह वैभव ? वह अलिगण की गुन गुन-गुन-गुन १ वे उत्कुल्लित विकसित करण ।। तुम भूले क्या मुदित प्रभाती गायन रत दिज दल का कलरव ? याद करो प्रथमा ऊषा के अनिलाचल की रस मय सिहरन । स्मरण करो निज विस्मरणों का करो आज पहरे अवगाहन ||