पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रश्मि रेखा शत सहन्न मधु रस धाराए बरस उठ सहसा झर झर कर हो शवलित बसुधा-अलम्बुषा मुदमय नृत्य कर उठे थर थर स सूले अग जग मरुपन्द्र में डरक बहो मरे रस निझर । सब लक्ष्य भवन बास्तव म प्रधान उपीड़न है। आगे देखिये-असीम में निस्सीम को कैसे पटाने की चेष्टा की गई है- मानव का अति क्षत्र घरोंदा जग का प्राङ्गण मन जाए । यो सीमा में नि सीमा का विस्तृत चदुआ तन जाए । कोऽहम् कस्त्वम् में उलझा हुआ प्राणी कैसे सोचता है यह भी देखिय-- तव प्राङ्गण यह क्या अनन्त है? या कि कहीं यह मत घस है? कब तक हो सुलझ पायेंगे घिर रहस्य ये सारे ? अस्थिर बने रहा तुम वारे । इस प्रकार के चिंतना को उकसाने वाले अनेक स्थन उनम बहुत मिलेंगे। उनमें एक-श्राप बन के भी गीत है जिनम काममता बहुत है यद्यपि भाषा की रष्टि से नितांत श्रदोष नहीं रह पाय । एक स्थान पर मैंने सकेन किया है कि अभि प्रजन का सक्षिप्त प्रयास 1 अनी हिंदो और संस्कृत नीना भाषाओं म सक्षिप्त अमि यजन अवस्था एक प्रथक मह व रखती है। छोटी-छोटो सूनात्मक सूमियों बहुधा अपन में पूर्ण होती हैं और उक्ति वैचित्र्य अथवा ज्वलत विचार खण्ड अथवा प्रमुख तथ्य रूप अथरा वास्तविक किर्ष का प्रमुख भाग सामने रखने के कारण पाठफा पार श्रोताओं के कराठ में अपना स्थान कर लती हैं। आशिक सत्य के दशन हाने के कारण इनका बड़ा पापक प्रभाव पड़ता है। अग्र जी म इहैं (Dpg ) कहते है । सस्कृत और हिंदी म तो इन सूनात्मक सूमियों के लिये विशष छदा का प्रयोग होता है । दोहा सोरठा परवा भार्या अनुष्नुप इयादि छदा में बहुषा सूफिया को रचना की जाती है । इन छन्। को कवि सूकियों के अतिरिक्त मुकक भाव विचार और कप का प्रक करने के गिये भी प्रयोग करते हैं। कवि को सबसे बड़ी कजा यह है कि एक या अनेक चित्र अथवा पापार दो पलिया गोत नहीं