पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१५१

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रश्मि रेखा मेरे परिपन्थी सूने दिक् काठ हुए मेरे परि पपी प्रिय आज व्यर्थ हुई टेर मेरी लजवती प्रिय । काल धार बाहित कर मुशका ले चली खींच पटका है लाकर इस भीषण दिक्खण्ड बीच छूटे वे चरण जिहें नयनों से सींच-सींच निशि दिन ही अति पुलकित रहता था मेरा जिय सूने दिक-काल हुए मेरे परिप थी प्रिय !