पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१५२

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रश्मि रखा (२) पचल उष्णोदक दार बार सूख चलं हग पथराए है मम ग पथ जाहत पल-पल यह बदीय अनुपस्थिति करती मम प्राण विकल हहराता है अहरह तुम बिन यह सूना हिय सूने दिक् काल हुए मेरे परिप थी प्रिय । बधकर तम किसी अन्य जन की भुजपाशों में भूले क्या आना मम स्मृति की उछवासों में ? मरजी राउर की पर अब भी इन श्वासों में करती है नाम स्मरण यह मम रसना इद्रिय सूर दिक्-काल हुए मेरे परिप थी प्रिय । क्या जान तुम अब हा किसके रस-रा पगे? क्या जान रीझरीझ किसक तुम हृदय लग ? इतना मैं जानू हू मेर दुर्भाग्य जगे । तुम जिन हा चला सजम जीरन निजन निष्क्रिय । सूने दिक काल हुये मेरे परिप थी प्रिय ।