पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रश्मि रखा (५) यदि होता सम्मुख मैं तो तुम कैस जाते ? घेडी बन जाते ये मेरे भुज अकुलात । मुझको बिसरा सकत फैसे तुम रस रात ? पर अब क्या ? अब तो सब साथ हुई मरी निय सुने दिक्काल हुए मेरे परिप था प्रिय । मेरे प्रतिपक्षी जो साजन की चाह जिन्ह वे क्यों मम निधि लूट १ क्यो मम सौभाग्य छिने ? लटा यो मम सुहाग । रथ न क्या दरद हे ? कुछ तो यो सोचते कि मै इनित व दी प्रिय सूने दिक्-काल हुए मेरे परिपथी प्रिय ! कौन कहो देगा यो अपना सौभाग्य दान ? दुष्ट दस्यु दल का यों रख सकता कौन मान ? पर मन मोहन तम भी जग मोहन हो सुजान अयों से स्वयं जुटे वा जी ! बहु धधी मिय सूने दिक-काल हुए मेरे परिपथी प्रिय ।