पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रहिम रेखा (८) निज का यों लुटवा के मझका यों लुटवाया । चरणाश्रित जन को यों चरणों से छुटवाया योला यह नया चोर क्या ऐसी निधि लाया ? जा यों तुम छोड चले डाल गले फ दी पिय | सूने दिक काल हुए मेरे परिप थी प्रिय ! तुम्हीं कहा इस क्षण अब दूदू क्या अन्याय ? क्या जाऊ हाट पाट करने फिर क्रय विक्रय ? मिय अब सा है असह्य जीवन का ताप अय । हर हर हहराती हिय होलिका हसन्ती प्रिय सुन दिक काल हुए मेरे परिपथी प्रिय ! जिला कारागार उन्नाव विनाकफरवरी १९४३ 1 } इस ती अगीठी