पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१५७

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रश्मि रेखा विहस उठो, प्रियतम, तुम मेरे सध्या-पथ में विहस उठो प्रियतम तुम अमिता मिति छिटका दो मेरे निगमागम तम । शांत हुई दिन की वह सनन सनन शीत पवन घुमड़ रहे हिय नभ में मम सचित मौन स्तवन नूपुर की अन झन से मर दो मम शून्य श्रवण आआ इस संध्या में पग धरते थम थम तम मेरे इस तम पथ में विहस उठो प्रियतम तुम ।